संविधान के अनुसार अपने पक्ष का प्रदर्शन करना और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के खिलाफ़ किसान नेता की जंग



हमारा संविधान हमें आजादी देता है अपने विचारों को व्यक्त करने की परंतु उसका असर समाज पर गलत ना जाए तीन चार वर्ष में किसान आंदोलन के द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी का महत्व आम जन मानस के समाज में आया लोग जागृत हुए सरकार के खिलाफ अधूरी जंग किसान संगठनों ने जीती अधूरी इस कारण की प्रधान मंत्री ने कानून की वापसी की घोषणा की परंतु अभी तक कानून वापस नहीं हुए....

आप सब सोचेंगे जो बाते लगभाग सभी को पता है उसे क्यों कह रहा हूं तो उसका कारण बिजनोर उत्तर प्रदेश में किसान नेता और बार काउंसिलिंग का टकराव और दोनों पक्षों के द्वारा अपनी बात को लेकर प्रदर्शन करना सबसे पहला मुद्दा क्या है इस विषय में जो जानकारी हुई है व यह है कि चकबंदी न्यायालय में कुछ कमजोर किसानों की लाभ वाली जमीन दबंग भू. माफिया के नाम अलर्ट करने का आरोप किसान नेता चौ.दिगंबर सिंह ने चकबंदी अधिकारी पर लगाया और इस कारण से बिजनोर की बार काउंसिलिंग के कुछ वकीलों ने चौ.दिगंबर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और उन्हें गैंगस्टर और यूएन प्रति गैंग चलाने का आरोप लगाकर उसकी संपत्ति की जांच की मांग कर दी जिसका कारण तनाव का माहौल बनता नजर आया

इस सारे विषय पर नजर डालते हैं चकबंदी अधिकारी के पास शक्ति होती है कि जिस क्षेत्र या गांव में चकबंदी है वहां की स्थिति प्रति संबंधित अधिकारी अपने विवेक से फैसला ले सकता है और अगर किसी पक्ष या व्यक्ति को इस फैसले पर आपत्ति है तो वह व्यक्ति अपने अधिवक्ता से फैसले पर अपील कर सकता है अगर चकबंदी अधिकारी भ्रष्ट है तो कुछ अधिवक्ता लोग सांथ गांठ करके उसके साथ मिल कर अच्छे दाम चुकाते हैं और संविधान के अनुसर फैसले पर विचार विमर्श कर इस्तेमाल कर सकते हैं फैसले को गलत या सही सिद्ध करना भी अधिवक्ता की जिम्मेदरी है आईएसआई कारण से किसान नेता से जब चकबंदी अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप हानी होने वाले किसानों के हक में बात कहीं तो कुछ अधिवक्ता की जिम्मेवारी है किसानों के हक में बात कहीं तो कुछ अधिवक्ताओं को उनके छेत्र में किसान संगठन का उत्साह पसंद नहीं आया और उन अधिकारियों ने चौ दिगंबर सिंह पर आरोप कि झड़ी लगादी

इसी के साथ यह सवाल उठा खड़ा हुआ है कि हमारा संविधान हमारे देश के नागरिकों को कहां तक ​​अपनी बात कहने की आजादी देता है यहां तक ​​मुझे जानकारी है हम लोग सुप्रीम कोर्ट के द्वारा लिए गए फैसले पर विचार चर्चा सोशल मीडिया के माध्यम से करते हैं किसी के साथ यह सवाल उठा खड़ा हुआ है कि हमारा संविधान हमारे देश के नागरिकों को कहां तक ​​अपनी बात कहने की आजादी देता है यहां तक ​​मुझे जानकारी है हम लोग मन्नेया सुप्रीम कोर्ट के द्वारा लिए गए फैसले पर विचार चर्चा सोशल मीडिया के माध्यम से करते हैं लेकिन कोर्ट के सम्मान में फैसले की आलोचना नहीं करते क्योंकि हम सबको पता है कि हमारे संविधान में पक्ष पात नहीं है और हम लोग संविधान न्यायालय का सम्मान करते हैं परंतु यहां बात चकबंदी अधिकारी की है जिसके फेसले पर अपत्ति सबसे पहले चकबंदी न्यायालय में ही होनी है जो लगभाग न्यायालय के जैसा ही कार्य करता है यह बात अलग है कि उनके पास न्यायालय जैसी पावर नहीं है.......

एक बात अक्सर देखी गई है अगर कोई गलत की खिलाफत करता है तो
भ्रष्टाचार व्यक्ति अपने बचाव में पूरी तरह दबाव बना कर बात को दबाने का प्रयास करता हमारे देश में प्रशासन के अधिकारियों और कर्मचारियों में लगी भ्रष्टाचार की मानसिकता किसी से छुपी नहीं है और एक गलत निर्णय कैसे व्यक्ति के जीवन को प्रभावित कर सकता है यह सब जानते हैं इसलिए
हर कोई समझौते पर विश्वास रखता है जिस से भ्रष्टाचार का पोषण होता है.............

आगे देखते हैं यह विवाद क्या नया रूप लेता है क्योंकि किसान नेता के खिलाफ भी अधिवक्ता ने उनको मिले अधिकारों के अनुसर ही विरोध में मोर्चा खोला है ( जय हिंद )


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