गल्ला बांटेंगे तो वोट मिलेगा, झेलना तो किसान को है हमें क्या।

        



              गल्ला देने के लिए गेहूं नहीं तो किसानों को भरनी पड़ रही नुकसान की कीमत।

         बड़ा अजीब है ना यहां व्यापारी अपनी मर्जी से खरीद-बेच करता है यहां दवाइयों के निर्माण पर कम लागत परंतु रेट मनमर्जी का होता है दवाइयों का नाम इसलिए लिया यह वह चीज है जिससे इंसान की जिंदगी जुड़ी होती है परंतु आज जब प्रशासन व सरकार के पास गल्ले में देने के लिए गेहूं कम पड़ गया।

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तो सरकार ने गेहूं खरीद पर शिकंजा कस दिया। नुकसान बेचारे किसान का हो रहा है परंतु शोषण करने की नीयत से हमारी सरकारी किसानों को पहले भी लुटती रही है अब भी लूटेंगी। क्या फर्क पड़ता है बस यही तो कहना है कि किसान अन्नदाता है परंतु अगर यही किसान हक मांग ले तो काहे का अन्नदाता फसल बेचता है तो पैसा नहीं लेता। ऐसे कुछ शब्द कहने वाले अंधभक्त अब किसान के घाटे की भरपाई अपनी जेब से क्यूं नहीं करते या सरकार इस घाटे को पूरा करने के लिए बोनस का ऐलान क्यूं नहीं करती। अगर किसान आवारा जानवरों का मुद्दा उठता है तो कहा जाता है योगी और मोदी ने कितने जानवर छोड़े है हर बार किसान ही क्यूं झेले। धर्म के प्रति आस्था व गाय से प्यार तो सभी करते हैं जवाब देही किसान की ही क्यूं यह सवाल है। 

           


 आज हमारी जनता को भरपेट भोजन देने में हमारी सरकारें फेल हुई है नुकसान अकेले किसान को क्यूं उठाना पड़ रहा है कारण है हम लोगों का किसानों के प्रति दोहरा नजरिया है इसी कारण से किसानों की समस्याओं को अनदेखा किया जाता है और जब जरूरत होती है तो किसान का हक मार लिया जाता है इसी कारण से किसानी की कमर टूट रही है किसानों के प्रति जिम्मेदारी किसी ने नहीं निभाई।

          फिल्मों में देखा करते थे कि जब जनता पर कोई विपत्ति आती थी तो राजा कहता था खजाने का मुंह खोल दो परंतु अब हमारी सरकारें खजाना तो पहले ही लूट लेती है तरह-तरह के टैक्स लगाकर पहले ही जनता का शोषण करती है जब कोई विपत्ति देश पर आती है तो किसानों की तरफ देखा जाता है और बाद में किसानों को ही भूल जाते हैं यही हमारी रीत है किसानी कभी भी सरकार के लिए फायदे का सौदा नहीं रही क्योंकि नीयत साफ नहीं है व्यापारियों से गिफ्ट,पार्टीफंड मिलता है किसानों से (अपनी मांग मनवाने के लिए) विरोध मिलता है इसीलिए विपत्ति में काम आने वाला किसान नेताओं का चहेता नहीं है।

            राजनीति में भावुकता से काम नहीं चलता। राजनीति भावुकता का इस्तेमाल करना जानती है आम आदमी अगर भावुकता से बाहर और दिमाग का इस्तेमाल करता तो आम आदमी को इस्तेमाल करके नेता अपना घर कैसे भरते। इसीलिए आम आदमी को भावुक करना है और गल्ले पर, मुफ़्त के राशन पर निर्भर रखना है खजाने पर बोझ ना पड़े किसानों का शोषण करो खेती कभी भी मुनाफे का सौदा ना बने ध्यान रखें तभी किसान ज़मीनें बेचेगा और उनकी जमीनों को महंगा करके लाभ लिया जाएगा।


जानवरों से नुकसान किसान का होगा और मांस के व्यापारियों से पार्टी फंड सरकार लेगी। आम आदमी की भावुकता का लाभ सदा सरकारें उठाती रही है और यह भी सच है जब तक हम विपत्ति में नहीं आएंगे हमें क्या। 

       


यह आजादी अपने प्राणों की आहुति देने वालों का कर्ज है हम पर। इसे हम बर्बाद नहीं कर सकते गैर जिम्मेदारी के कारण हम लोग अपने देश का नुकसान कर रहे हैं और सोच रहे हैं किसानों का शोषण हो रहा है हमें क्या।

                      जय हिंद।


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