लखनऊ में एक सरकारी विभाग है। जिसका काम है जनहित की योजनाओं का प्रचार करना लोगों को उनके बारे में जाग्रित करना इस विभाग का नाम है। मद्यनिषेद एवं समाजोत्थान विभाग जैसे कि नाम में झलक मिल रही है। कि ये विभाग नशा कंट्रोल करने के कार्य करता है। और लोगों को जाग्रत करने के लिए कैम्प आदि लगाता है। इसका एक कार्य और है। सरकारी अनुदान प्राप्त संस्थाओं के द्वारा नशा उन्मूलन के वर्क को नई दिल्ली सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में रिपोर्ट करना ताकि संस्थाए आगे सरकार से पैसा प् सके, दूसरी तरफ जो संस्थाए संघर्ष कर रही हैं। उन संस्थाओं को गाइडलाइन के अनुसार संचालित करवाना और उनके वर्क पर केंद्र के मंत्रालय से अनुदान प्राप्त करने में संस्था की मदद करना। सरकारी पैसा है तो जांचे भी कई होती हैं। परन्तु उन अधिकारी महाशय को तो लाखों चाहिए उन्होंने के अपनी टीम बना डाली जिसमें विभाग के रिटायर्ड कर्मचारी, कुछ सत्ता के लोग जो बड़े नेताओं के संपर्क में हो, कुछ NGO और उनको चलाने के लिए कुछ उन्ही के शागिर्द हैं अब अधिकारी का काम है। UP में से अलग अलग जांचों में से फ़ाइल को निकलवाना और दिल्ली में अपने नेता टाइप व्यक्ति के माध्यम से फ़ाइल को पास करवाना और NGO के संचालन का दिखावा करना बाकी के लोगों का कार्य है जांच के समय कुछ किराए के लोगों को पैसा देकर बेडों पर दिखा दिया जाता है। और जांच करवा दी जाती है। ये लोग इतने शातिर हैं। कि एक संस्था प्राइवेट में भी संचालित रखते हैं। वहां से लोगों से पैसा निकालकर सरकारी संस्था को भी जीवित रखते हैं। प्राइवेट संस्था के स्टाफ को सरकारी में दिखाते हैं। और इस तरह के फ्राड करते हैं। कि अगर सब को लिखने लगे तो कई पन्ने भर जाएंगे। इनकी टीम के ज्यादातर लोग एक जाति के हैं। ताकि विश्वासनीयता बनी रहे।
अब ये अधिकारी महोदय अपने इन महान कार्यों के कारण एक बार अपनी कुर्सी खोते खोते बच गए उनकी ये टीम और उच्च अधिकारियों को समय समय पर दिए गए गिफ्टों ने उन्हें बचा लिया और अपने उच्च अधिकारियों का चहेते होने का एक कारण उनका वर्क भी है। जो चाहे बेईमानी का है। परन्तु है तो काम और गैर-जिम्मेदार अधिकारियों को काम होता मिले साथ गिफ्ट आदि मिलें और क्या चाहिए अपने कमाऊ पूत से यही बातें उस अधिकारी की ढाल हैं। जब महाशय दोबारा से नौकरी पर आये तो लखनऊ से दूर थे और कुछ NGO की जांचे लटक गई और चहेते अधिकारी महोदय की वैसे भी उच्च अधिकारियों ने दो क्षेत्र दे रखे थे एक लखनऊ और दूसरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाका और इन सब एरियों में चल रही है। कम से कम 5 से 7 संस्थाएं जो गाइडलाइन के मानकों पर खरी नहीं उतरतीं हैं। और एक संस्था में सरकार का 25 लाख के करीब वार्षिक पैसा आ रहा है। और इन्ही महोदय के माध्यम और प्राइवेट संस्थाओं के द्वारा इन संस्थाओं को दिखाने में संचालित किया जा रहा है। कोई पूछने वाला नहीं क्यूंकि बहुत से अधिकारी व लोग जानते ही नहीं कि खण्डहर सा दिखने वाला लखनऊ मध्यनिशेद विभाग के कार्यालय में इतना पैसा है। अब इस गलत कार्य में कैसे कैसे हथकण्डे होंगे इसका अंदाजा इस बात से लगा लिया जाए कि जब महाशय लखनऊ से दूर थे तो एक अन्य अधिकारी महोदय जांच कर रहे थे उन संस्थाओं की जिनकी जांचों के बाद सरकार का पैसा आने लगा था परन्तु तफ्तीश करने वाले अधिकारी को पता था कि महाशय कैसे हैं। और क्या क्या गलत है। उन्होंने विवादित संस्थाओं की जांचों को दो-तीन वर्षों के लिए लटका दिया। और उन पर दबाव बढ़ने लगा और उसी दबाव में लखनऊ के जांच वाले अधिकारी ने नौकरी छोड़ दी। बाद में महाशय ने बताया कि उनके माता-पिता की जिम्मेदार के लिए नौकरी छोड़ दी। और वापिस आशीर्वाद से लखनऊ की कुर्सी पर आये और चल रहा है खेल। हर कोई नौकरी नहीं दे सकता इसलिए चल रहा है। सब खामोश हैं।
अंत में जो पैसा हमारे कर्जदार देश इसलिए निकाला जाता है कि हम लोग नशा मुक्त भारत बनाएंगे। लोगो का जीवन बचाएंगे। उस देश का भ्रष्ट सिस्टम कैसे सपनो का भारत बनने देगा। सरकार नीतियां बदलती है। परन्तु कोई लाभ नहीं। लाखों रुपये जिले को मिलते हैं। नशा मुक्त भारत अभियान के नाम पर परन्तु किसी ने कभी भी कोई प्रोग्राम देखा या कोई प्रचार सुना या देखा यहाँ तक आधे अधूरे नशा मुक्ति केंद्र चल रहे हैं। लोगों का शोषण हो रहा है। कोई जिम्मेदारी कुर्सी पर बैठकर लूट रहा है। जिसका ईमान जिन्दा है। वो नौकरी छोड़ रहा है। किसी को कोई फर्क ही नहीं हमारे जैसे लोग अपना धर्म निभा रहें हैं। परन्तु हम लोगों को भी दबाव झेलना पड़ रहा है। परन्तु फिर भी निभा रहें हैं। हमें बताया गया कि हमारा देश महान है। हम भारतीय विश्व में अच्छा सन्देश देते हैं। विदेशों में हमें सम्मान मिलता है। जब हम अपने देश में ही बेईमानी झेल रहें हैं। देख रहे हैं। और खामोश हैं क्यूंकि हम लोग समस्या नहीं लेना चाहते और न्याय मिलेगा कैसे कुर्सियों पर तो लालच में बंधे लोग हैं कैसे बदलाव आएगा।
एक सांसद महोदय कैसे नशा मुक्त भारत बनाएंगे। जब नशा छोड़ने वाले को नशा मुक्त होने का सहारा ही नहीं मिलेगा उसको मिलने वाली सुविधा तो पहले ही लूट ली गई और उस लूटने वालों के हाथों को भी जाने-अंजाने में सांसद महोदय की सिफारिश ने मजबूत किया है।
जय हिन्द।
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