किसानों के हक के आंदोलन एक दिखावा या हक के लिए संघर्ष '''😊


किसान। आंदोलन के हक के लिए एक दिखावा या हक के लिए संघर्ष। ...



किसानों के हक के आंदोलन एक दिखावा या हक के लिए संघर्ष '''😊


दिल्ली संघर्ष के बाद किसान संगठनों ने किसानों के मुद्दों के लिए रोज रोज; आंदोलन की धमकी का एक नया ट्रेंड चल रहा है 'अब कुछ किसान नेता धरने पर बैठ जाते हैं और प्रशासन के अधिकारियो से मिले अस्वासन पर धरना करके किसानों को सपना दिखाकर अपनी बातो से झेरडी जीत की दवा करके ये संदेश दे रहे हैं। कि हमने समस्या का समाधान कर दिया है जबकि स्थिति और भी खस्ताहाल जा रही है। ये किसान नेता अपना राजनीतिक कैरियल बना रहे हैं अगर लखीमपुर की तिकुनिया की घटना का ध्यान रखें तो उन किसान नेताओं ने सरकार से मिलकर किसानों की मंच पर शूरा मारा और उन तमाम मामलों का लाभ भी सरकार को ही हुआ और किसानों में उर का महताउ चल पाए '''


आज कल गन्ना का भुगतान को लेकर किसान संगठन आंदोलन है। और अलग-अलग समय पर धरना दिया गया, फिर दो चार दिन के बाद अधिकारियो से बातचीत करके अधिकारियों को मांगे से संधि करके धरना'' 
ट्रिगर कर दिया बजाता हे इन बिना मतलब के राजनीतिक धरना से आंदोलन का महत कम या खत्म होता जा रहा हे' लोगो   के मनो में ये बिचार मजबूत होते जा रहे हे कि इन धारणा और आन्दोलनुओ से कोई फर्क नहीं पड़ा है' ये बातो का लाभ भी आगे आने वाले समय में सरकार और लुटेरे जो वैपरियो के रूप में हे 
जो उन्ही को होने वाला है और ये खेल भी सोच समझकर खेला जा रहा है। किसान मज़बूरी में समझौता कर रहा है जो उसे नहीं मिलेगा या अपनी परिस्थितियों के समाधान के लिए लोगतान्त्रिक तरीके से लौना पाउगा परन्तु उद्वेगपात्रियो और धारणाओं ने भी इसे तोड़ दिया है लिया और इस बार विरोड करने पर गुलरिया भुज लखीमपुर खीरी के अधिकारियो ने भी किसानों पर हस्ताक्षर दर्ज करवाए और सुगर माइल्स रिकॉर्ड्स पर भी कोर्ट से स्टेट ले लिया। और किसान नेता इस पुरे मामले में चुप ही नजर आएं और किसान फिर हार गए '''
एक कदम 'सच्चाई के और '''
जिस तरह से किसानों को लुटा जा रहा है' और सरकार का कोई नियंत्र नहीं है पुरे समूहों पर या यु सरकार और प्रशासन नहीं चाहता। सब आपने अपने सौर्थ देख रहे हैं विपछ नकारा है संत्रा में रहो विपछ भी यही कुछ कह रहा है तो किसान संगठन से भी अब एमाइड ख़तम जा रही है अब किसानओर किसानों का समर्थन करार है जैसी उम्मीद है कि किसानों को मेहनत का उचित मुल्ये मिलेगा वैसे सरकार और संबंधित अधिकार ने गैर-वरीयों से आपने कामो को कार्य दिया। प्रसाशन के व कर्मचारी उतने तेज होते हैं की ये कभी भी रिस्क `नहीं लेते हैं और रिस्वत का पैसा भी ऐसे अहसान कर रहे हैं लेकिन काम पैसे मिलने के बाद ही होगा अब आप अंदाजा लगाने के लिए किसान जो अक्षर भुगतान में रहते हैं अगर आदमी के लोखड़ौन ले तो उतना समय और खर्च किसान को परिणाम मिलने में लगता है कि होश से आमदनी नहीं होती है एक 20;; 25 भीगे वाला किसान रिशवत के रूप में कितना देगा तो वो है क्या करता है 'की समझौता करता है' सरकार के दौरान जो कमी की एम . एस, पी तय की गई है वो उससे काम में बिचौलिये के माधयम से परिणामी बचत है वो भी एमएसपी से कम दर पर इसका एक और कारण भी होता है जब किसान खरीद केंद्र पर कमी लाते हैंहै.. 

तो उसे  बताया जाता है की आपके फसल में  मापडयो  के अनुशार नहीं हे.अब बात सवहलती हे की बीच का कोई रास्ता तो कहा जाता  हे रेट काम लगे गए और वही फसल अब बिचौली खरीदता है.और बाद में सरकार के रेट  पर  बिकती हे और देखिये फसल खरीद में जो कागज लगते हे वो उसी किसान या उसके जैसे दुषरे किसी भाई।  के हे क्योकि हमारे किसानो के पास न तो फसल हो स्टॉक करने का समाधान हे और न इतना पैसा की वो फसल ज्यादा दिन रोक केर वैपरियो पर दवाव बना सके इस बात को  वैपरी जन्नत हे उस  सब खेल में अदिकारियों ने देखना बंद  रखा हे. उसे भी तो हिषः।   सरकार  पता हे. जब विरोध करने वाला कोई न हो और  संगठन जिसअदिकारियों ज्ञापन देते हे उसका भी हिस्सा। 

दूसरी तरफ किसानो ने भी आवाज़ बंद कर रखा हे।  जो विरोध करता हे उसे परेशान करने  का काम  किया जाता हे ऐसा ही खेल गन्ने को लेकर हे सुगर मील  समय से पैसे नहीं देती और जो देती हे वो पर्चियां नहीं देती इन्ही कार्डो से फिर वही m s p  .से कम  रेट पैर खरीद और लूट जारी हे। सब गाँधी जी के तीन बंदर बने बैठे हे कम समझ आते हे। की येमांग पूरी करो नहीं धरना पर  बैठने अब वो लोग आते धरने पर बैठे और वाद मे अस्वावासन पर धरना सभागितकेर दिया लाभ फिर भस्त लोगो को हुआ क्योकि लोगो के हौशले टूटने लगे है। 

ये लड़ाई किसानों के लिए वजूद की हे। सुन अपनी तस्वीर और मजबूरी और किसान नेताओं के धोखे के कारण किसान लग भाग हार की तरफ बेईमानी और भरत लोग उन बोले और थके हारे लोगो निचौने में काई ज्यादा संघषृ नहीं करना पर रहा है और आदिमियो से आसानी से लूट जारी ही बिना अदिकारियों से लोग लूटने को ख़तम कर रहे हे मिलने वाला कौन हे आप या हम शैवाल अब ये हे आंदोलन से बाइमनो पर असर होगा हक किसी का खा कोई रहा हे 'यही प्रजतब हे' यही किसानों नेतौओ की सफलता हे। सोचो और बदलो। शायद किसान बच जाएं।



... जय। हिन्दी। 💗🚩















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