जबरन नशा मुक्त करने का प्रयास या पैसों के लिए किसी को घर से उठाकर लाना और प्रताड़ित करना ?



नशा मुक्ति केंद्र एक सेवा का कार्य, किसी एडिक्ट की मदद करना, उसे और उसके परिवार को राहत देना है। इस कार्य को कई व्यक्ति और संस्थाएं कर रही हैं। हमारे देश के विकास के लिए भी नशा मुक्त होना बहुत जरुरी है। मोहनलालगंज लखनऊ के सासंद श्री कौशल किशोर जी भी नशा उन्मूलन पर कार्य कर रहें हैं। परन्तु इस में सुधार के लिए योग्य नशा मुक्ति केंद्रों का होना भी जरुरी है। परन्तु कुछ लोग लालच के लिए इस सेवा के कार्यों को गन्दा कर रहे हैं। इसमें कुछ अधिकारी भी शामिल हैं। जो इस कार्यों को गन्दा कर रहे हैं। जब खेत को बाढ़ ही खा जायेगी तो बचाएगा कौन, अब हम बात करेंगे अलग अलग तरीके से :-



१. अधिकारी जिनके निरिक्षण में कोई कार्य पूर्ण होता है। वो अधिकारी ढूंढ़ता है ऐसे NGO को जो कार्य तो करते हैं। नशा मुक्ति पर उनको जानकारी नहीं है उसको समस्या आ रही है फंड की संस्था संचालन के लिए ऐसी मौकों पर उस संचालक को दिलासा देकर उसकी संस्था के नाम सरकारी पैसा निकालकर हजम कर जाना और वो संस्था को कुछ पैसा देदेना और बाकी खुद हजम कर जाना। उच्च अधिकारियों का आशीर्वाद बना रहे इसलिए गिफ्ट देते रहना।





२. नशा मुक्ति केंद्र वाले प्रचार करते हैं। योग्य काउंसलिंग और स्वच्छ माहौल, पौष्टिक भोजन व घर से लेकर जाने की सुविधा ये सब प्रचार होतें हैं। जबकि न कोई काउंसलर होता है। स्वच्छ माहौल इतना की वहां दाखिल व्यक्तियों के गीले कपड़े भी बाहर नहीं सुखाये जाते, सफाई कर्मी न होने के कारण कभी पूरी सफाई नहीं होती सबके इस्तेमाल वाली टॉयलेट भी दाखिल व्यक्ति को साफ़ करनी पड़ती है। पौष्टिक भोजन में दाल का पानी, आधी कच्ची रोटी और बनाने वाले खुद दाखिल व्यक्ति और अगर कोई रसोइयां है भी तो वो रात का खाना दोपहर में बना जाता है उसे भी तो घर जाना है। बिस्तरों और गीले कपड़ों को धुप न मिलने के कारण खुजली होना आम बात है। तब भी पैसों के लिए झूठा प्रचार हो रहा है।



घर से लेकर जाने की सुविधा पर बस इतना कहना है। एडिक्ट नकारा नहीं है। चल सकता है। परन्तु उसे उसकी इच्छा के खिलाफ लाया जाता है। ताले में बंद किया जाता है। अगर वो विरोध करे तो मारा-पीटा जाता है। स्टाफ खुद नशा करता है। तो ज्यादा चोट लगने की संभावना होती है। और इस सब में सुधार हो सकता है। अगर व्यवस्थाएं सही हों परन्तु उसके लिए अनुभवी स्टाफ चाहिए और उसके लिए पैसा जो खुद संचालक की जेब में जा रहा है। और मूर्ख बन रहे हैं परिवार जो उम्मीद लगाए बैठे हैं सुधार होगा। परन्तु हो रहा है धोखा।



अब जिम्मेदार कौन परिवार, प्रशासनिक अधिकारी या संस्था के संचालक जी हाँ ये जवाब जरुरी है। सरकारें सदन में कायदा-क़ानून बनाती हैं। और प्रशासन लागू करता है। न्यायपालिका गलती पर सुधार करवाती है। मीडिया लोगों तक सच लेकर आता है परन्तु भुग्त-भोगी लोग जब चुप रहते हैं। तो भ्रष्ट लोगों का हौसला बढ़ता है। इसी का नुक्सान भुगतना पड़ता है।

जय हिन्द।  

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