Weather Effects on Crops : - मौसम और मौसम की मार के कारण हुआ किसानों का नुकसान ?

इस देश में सबसे ज्यादा नुकसान में अगर कोई है। तो वो है किसान, 

एक कहावत है। जो घर के लिए कमाता हैवो अक्सर ठंडा खाना खाता है




 

यही हालात हमारे किसानों के साथ हो रहा है। ऊपर से मौसम की मार झेलनी पड़ रही है। अभी तीन चार दिन पहले हुई बरसात और तेज़ हवाओं ने गन्ने की फसल का काफी नुकसान किया। गन्ना गिर गया अब उसको दोबारा से खड़ा करने के लिए लेबर का खर्च झेलना पड़ेगा। अगर लेबर अनुभवहीन हुई तो गन्ना टूट सकता है,या जड़े हिलने के कारण सूख सकता है। और जैसे कि अगर दोबारा मौसम खराब हुआ तो ये सब खर्च झेलने के बाद फिर गन्ना गिर सकता है अगर गन्ना गिरा रहेगा तो उसे चूहा लग सकता है। जो काफी नुकसान करेगा। उससे फसल को बचाने के लिए चूहे मार दवाई का इस्तेमाल करने पर भी खर्च होगा। अभी गन्ना शुगर मीलों के चलने तक बचा कर रखना होगा। जो एक बार गिरे गन्ने को सभालंना काफी मुश्किल है परन्तु संघर्ष जारी है।

इतना कुछ होने पर भी अगर गन्ना शुगर मीलों तक पहुँचता है तो उसका भुगतान, जो सरकार की गलत नीतियों के कारण हालात बिगड़ते जा रहे हैं। शुगर मीलों को अंदाजा है। अगर वो कुछ दिन तक व्यापार न करे तो सरकार गन्ने की फसल को कहाँ निकलवाएगी। और सरकार ऐसे हालातों को सही ढंग से हैंडिल नहीं कर पाएगी इसका उदहारण है। कि पिछले वर्ष में सरकार के मंत्री ने तो यहाँ तक कह दिया था कि गन्ना ना बोयें या कम बोयें क्यूंकि अगर कोई वस्तु जरुरत से ज्यादा हो जाती है तो उसकी अहमियत और कीमत दोनों गिर जाती है। सरकार किसानों को इस फसल चक्कर से बाहर लाना चाहती है।



बात हो रही थी मौसम की मार की जो किसी के बस की बात नहीं है इसीलिए किसानों को संघर्ष करना पड़ेगा। एक और सरकार का फेलियर साबित हो रहा है। वह आवारा जानवर जो किसानों की फसलों का नुक्सान कर रहे हैं। यहाँ तक सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। अभी इन आवारा जानवरों के कारण प्रदेश सचिव यूपी की दुर्घटना में मौत हो गई। परन्तु हम लोग असहाय हैं। जिम्मेदारी कोई भी सही ढंग से निभा नहीं पा रहा इसीलिए समस्या बड़ी होती जा रही है। समाधान नहीं मिल पा रहा।

एक बात और तो जरूरी है। वो ये की मौसम के चक्र में फेर बदल हुआ है जिसका नुक्सान किसान को उठाना पड़ रहा है जैसे पानी का लेबल नीचे जा रहा है। परन्तु धान की फसल लगाई जा रही है। बरसात की जब जरुरत होती है तब ना होकर जब जरुरत काम या ना के बराबर होती है तब भारी बारिश हो जाती है। अब इस सर्कल को बदलने के लिए सरकार के साथ व किसान की हिम्मत की जरुरत है। परन्तु सरकार ने खुद की जिम्मेदारी व्यापारिक संस्थानों को दे दी। कारपोरेट और मज़दूर का पुराना 36 का आंकड़ा है। यही डर टकराव का कारण बन गया। सरकार ने ऐसा क्यूँ किया इसके पीछे का कारण है। सरकार को अहसास है कि लोकतंत्र की कमियों के कारण सरकारी अधिकारी व कर्मचारी भ्रष्ट सिस्टम की राह पर हैं। काम चोरी के कारण कई योजनाएँ लटक जातीं हैं। दूसरा जो भारत धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत से हिन्दू राष्ट्र की तरफ चल रहा है। उसमें उसे अपने फ़ाइनेंसर की भी जरुरत है। जो उनकी विचारधारा को प्रचार करने वा लागू करने में उनकी मदद करे। इसलिए बढ़ावा दिया गया है। अब इस समय भारत की ज्यादातर जनता वो है जो अपने संसाधनों की तलाश में इस नीति की तरफ ध्यान नहीं देना चाहती या उनको समझ ही नहीं है। उनको मतलब ही नहीं है।



जिस संघर्ष को अंग्रेजों से भारतीय लोगों ने एक जुट होकर जीता था आज वही भारत के लोग इतिहास को भूलकर दोबारा से आर्थिक गुलामी की तरफ बढ़ रहें हैं। इसी देश में किसान को उसकी फसल का उचित दाम और समय से दाम ना मिलने के कारण बैंकों से कर्ज लेना पड़ रहा है। यहाँ एक चीज देखिये सरकारी बैंक जिनकी ब्याज दर 6 से 8 प्रतिशत है। और कर्ज लेने के लिए रिश्वत व सिफारिश की जरुरत है। दूसरी तरह प्राइवेट बैंक जो तुरंत लोन देते हैं उनका ब्याज दर 10 से 14 प्रतिशत है। ऊपर के चार्ज अलग से अब इस फर्क को समझने की जरुरत है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार गन्ना भुगतान अगर 14 दिन से ऊपर हो जाए तो ब्याज सहित भुगतान करें। वो आदेश लागू होकर भी अमल में नहीं है परन्तु अगर आप बैंक या फ़ाइनेंसर कंपनी के डिफाल्टर होते हैं तो कार्यवाही पक्की है। आपके शोषड़ से सरकारों को कोई फर्क नहीं है। परन्तु अगर उनको टैक्स देने वाली कम्पनियाँ भाग जाएंगी तो कैसे उनकी विचारधारा लागू होगी। कैसे उनकी कुर्सियां बरकरार रहेंगी। इसलिए भी ये होता है। हमारी मीडिया चुप है। विपक्ष नकारा और किसान संगठनों के नेता कठपुतली या अटैंची के वजन में दबे हुए। अगर कोई एक दो सही भी है तो वो बिना पैसे के कैसे लोगों को जाग्रित करेंगे। ये सच है।

आज का बाकी आप के कमेंट बताएंगें कि सही क्या और गलत क्या ?

                                                                                         जय हिन्द जय जवान जय किसान

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