किशोर अवस्था में शरीर में होने वाले बदलाव को लेकर मन में द्वंद।
किशोरावस्था में जीवन के प्रति लापरवाही होती हैं फैसले भावुकता से भरे होते हैं शरीर में हो रहे बदलाव को लेकर मन में चिंता होती रहती है और गलत जानकारी व्यक्ति के मन को भटका देती है। आइए इसी पर बात करते हैं:-
बचपन से जब किशोर अवस्था में शरीर का बदलाव हो रहा होता है तो शरीर में उसका असर दिखना शुरू हो जाता है शरीर पर बाल उगना शुरू हो जाते हैं दिमाग में कई बदलाव होने शुरू हो जाते हैं यह बदलाव हमारे जीवन पर कैसा असर करेंगे। यह हमारी बचपन की शिक्षा तय करती है । यानि अगर हम बचपन में धर्म की परंपराओं के अनुसार और अनुशासन में ज्यादा आ रहे है💛 वह हमारे जीवन के इस बदलाव के बारे में अगर हम को सही जानकारी नहीं मिलेगी । तो कुछ बातों को लेकर हम डर और आत्मग्लानि में भी रह सकते हैं। इसके पीछे का कारण जैसे जब बचपन में शरीर में हारमोंस में बदलाव आ रहा होता है और वीर्य शरीर में बनना शुरू हो जाता है और शरीर के हो रहे इस बदलाव से हम ज्यादा परिचित नहीं होते उस कंडीशन में कभी-कभी स्वपनदोष होना स्वभाविक है। परंतु जानकारी का अभाव किशोर को परेशान कर देता है उसे लगने लगता है उसके शरीर में कोई कमी आ गई है शरीर के बदलाव में विपरीत लिंगी की तरफ आकर्षण स्वभाविक है परंतु कई बार बच्चा ज्यादा अनुशासन में💚 रहता है और अपने इस बदलाव को लेकर मन ही मन अपने आप को दोषी मानने लगता है इस कारण से वह दवाब में रहता है जबकि यह स्वभाविक प्रक्रिया है।
अगर माता-पिता बच्चे के इस बदलाव पर उसे सही ढंग से गाइड नहीं कर पाते या नहीं करते। तो वह बच्चा अपने सवालों के जवाब अपनी मित्र मंडली से तलाशता है और अक्सर देखा गया है व्यक्ति अपनी कमी को छुपाने के चक्कर😍 में अतिरिक्त करने का प्रयास करता है और यहीं पर किशोर अवस्था कि यह घुटन किशोर के आने वाले जीवन के लिए घातक हो जाती है वह अपने स्कून की तलाश अपनी मित्र मंडली में करता है। और अगर उसकी मित्र मंडली योग्य नहीं है। तो उसका जीवन व्यर्थ में प्रभावित होकर बर्बाद हो सकता है यह कड़वा है परंतु सत्य है। इसीलिए माता पिता को या बड़े भाई को अपने अनुभव का मार्गदर्शन बड़े अच्छे तरीके से शब्दों की मर्यादा को रखते हुए बच्चे को गाइड करना चाहिए। और मित्र मंडली पर भी निगरानी रखनी चाहिए यह जीवन का सबसे ज्यादा संवेदनशील समय होता है।
हमारे देश का इतिहास साक्षी है कि धर्म पर और मर्यादा पर ज्ञान देने वाले बहुत से साधु संत कामवासना और मन की इन भावनाओं को नियंत्रण नहीं कर पाए। किशोर तो अभी समझ से ना समझ है। शरीर के अंगों में होने वाले बदलाव और आने वाली उत्तेजना किशोर के मन में प्रश्नों की झड़ी लगा देगी। इसलिए स्कूल के शिक्षकों को किशोरों का मित्र बन उनका मार्गदर्शन करना चाहिए।😘 इसी तरह से हम सब लोग उम्र के इस दौर को सही मार्गदर्शन देकर हमारे देश की इस प्रतिभा को व्यर्थ होने की वजह सही इस्तेमाल में ला सकते हैं अक्सर देखा गया यही उमर बिगड़ने की होती है इसी कारण से इसी उमर में किशोर नशे की तरफ आकर्षित हो जाता है इस आकर्षण का एक कारण मित्र मंडली या कहीं से मिली शिक्षा जिसमें यह लाइन अवश्य होती है कि नशे के सेवन से टाइमिंग बढ़ेगी और हां कई बार किशोर अवस्था में हो रही उस उत्तेजना में किशोर को हस्तमैथुन की आदत पड़ जाती है और नसों की कमजोरी के कारण वीर्य का गिरना, या बार-बार स्वपनदोष का होना शरीर का कमजोर होना ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है इसमें दवाई नहीं मन नियंत्रण की ज्यादा जरूरत होती है इसलिए यहां पर भी मार्गदर्शक की ज्यादा जरूरत है। बड़ों को चाहिए अपनी जिम्मेदारियों को समझें।
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