Agitation :- दिल्ली आंदोलन दोबारा खड़ा हो पायेगा या नहीं ? राकेश टिकैत अपनी बात पर रुकेंगे ?

 


राकेश टिकैत ने फिर से दिल्ली में किसानों की मांगों को लेकर आंदोलन करने की बात कही। श्री राकेश टिकैत ने कहा सरकार किसानो से किये हुए वादों से मुकर गई है। इसलिए फिर से किसानों की डिमांड को लेकर आंदोलन की जरुरत है।


पहले के और अब के हालातों में अंतर है। बीजेपी और मोदी नेतृत्व की सरकार द्वारा लाये गए तीन कृषि क़ानून के कारण लोगों में ऐसी विचारधारा मिली थी कि एक बहुत बड़े आंदोलन का रूप ले लिया था। परन्तु अब वो माहौल नहीं रहा इसके पीछे के जो तर्क दिए जाते हैं। जैसे कि तीन कृषि क़ानूनो के कारण मंडी सिस्टम ख़त्म हो जाता सरकार और किसानों के बीच में से आढ़ती लोग हट जाते बड़ी बड़ी फर्में उनकी जगह ले लेती दूसरा विदेशों में बैठे NRI जिनकी भारत में भी जमीने हैं। और उन्होंने विदेशों में भी नागरिकता ले रखी है। उनकी जमीनों पर सरकार काबिज हो सकती थी जैसे देश के बटवारे के समय की जमीनें या जायदातें जो लोग पाकिस्तान चले गए हैं उन सब सम्पत्तियों पर उत्तर प्रदेश सरकार अपने हक़ में किये जा रही है। इस को लेकर पिछले टाइम में सुप्रीम कोर्ट की एक स्टेटमेंट है। कि अगर कोई व्यक्ति एक जमीन या प्रापर्टी पर पिछले 12 साल से काबिज है। और उसका कोई एग्रीमेंट या मालिक का कोई दावा नहीं है। और उस पर काबिज व्यक्ति अपने को साबित कर देता है। वह व्यक्ति उसका मालिक हो जाएगा। चाहे उसके नाम वह प्रापर्टी या जमीन न भी हो। यहाँ पर जो लोग विदेशों में वहां की नागरिकता लेकर रह रहे हैं। उनके पास इतना समय नहीं है कि वो हर साल भारत आये और एग्रीमेंट बनवाये उनके लिए इस स्टेटमेंट ने आने वाले खतरे का संकेत दे दिया था ऊपर से कृषि क़ानूनों ने डर को और बढ़ा दिया परन्तु ये सब बाहर रहकर अपने अनुभवों के आधार पर स्थानीय किसानो की भावनाओं को उभारकर एक बड़े आंदोलन की रूप रेखा तैयार कर गए जिसका लाभ किसान नेताओं ने और उनके संगठनों ने उठाया। सरकार ने भी इन्तजार की राजनीति चली और मौके पर दांव खेला जिस मेंन कारण के लिए ये आंदोलन की शुरुआत हुई थी। वो मांग पूरी होते ही तीन कृषि क़ानून वापस होते ही आंदोलन स्थगित हो गया और MSP का मुद्दा लावारिस हो कर रह गया। दूसरा कुछ संगठनों ने पंजाब में चुनाव लड़ा और लखीमपुर काण्ड में किसी भी संगठन ने संतोषजनक कार्य नहीं किया जिसके कारण संयुक्त किसान मोर्चे के दो भाग हो गए। एकता के कारण मिली कामयाबी कुछ दिनों में धुंधली हो गई। शरू में देख रही सफलता अब एक सपना बन कर रह गई। आंदोलन में विपक्ष के कुछ नेता जो उस समय किसानी चोला पहने बैठे थे उन्होंने चुनाव के समय अहसान गिनाना शुरू कर दिया। कुछ मिलाकर एक विचारधारा से पार्टी को मजबूत करती बीजेपी फिर से हावी हो गई और किसानीसंगठन कमजोर हो गया।


अब लग नहीं रहा दोबारा से देश एकजुट होगा। अगर MSP पर कुछ मजबूत क़ानून आदि बन जाए, ये ही शायद अब किसानों की सबसे बड़ी जीत होगी। बाकी टिकैत के दोबारा दिल्ली धरने की बात में कितना दम है। ये तो आने वाला वक्त बताएगा। परन्तु अब शायद NRI भाइयों से वो मदद न मिल पाए। जो पहले मिली थी। आप इस पर कमेंट करें प्रार्थना है।

                                              जय जवान जय किसान

                                                                     जय हिन्द

                                                                            लेखक की कलम से

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