मानवाधिकार संगठन :- स0 जसवंत सिंह खालड़ा की बरसी पर उस समय के हालातों पर एक रिपोर्ट

मानवाधिकार संगठन 




संविधान की सही जानकारी और लोकतंत्र का महत्व समझने के लिए जरूरी है। इन सब विषय पर पढ़ना। इतिहास में देखा गया है कि बहुत सी हुकूमतें या तानाशाहों ने मानवता का घान किया है। यानि इंसानों के साथ गलत किया। इस कारण से मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संगठन बनाये गए, उनके कुछ कायदे क़ानून हैं। बस उसकी जानकारी होनी चाहिए।

जसवंत सिंह खालड़ा जिनकी आज बरसी है। आज यानि 6 सितम्बर को इस महान इंसान को याद किया जाता है। इनका जन्म 2 नवम्बर 1952 को अमृतसर पंजाब में हुआ और ये मानवाधिकारों के संगठन के नेता थे। इनकी पत्नी का नाम जीत खालड़ा है। साल 1995 को कनाडा में अप्रैल के महीने में ऑडिटोरियम में जमा लोगों को एक शख्स अपनी स्पीच की शुरुआत एक लघु कथा से की कहा :- सूरज पहली बार अस्त हो रहा था जैसे जैसे वो अपना सफर तय करता जा रहा था,उजाला घटता चला जा रहा था,उजाला घट रहा था और अंधेरे के निशान प्रकट होने लगे थे, कहते है कि उस वक्त लोगों में हाहाकार मच गया, कि सूरज छिप जाएगाअंधेरा पसर जायगा किसी को कुछ नजर नहीं आएगा, ऐसे में हमारा क्या होगा, दुनिया चिंता में डूबी थी, लेकिन फिर भी सूरज अस्त हुआअंधेरे ने अपना जौहर दिखाने के लिए धरती पर कदम रखा, पर कहते हैं कि दूर किसी झोपड़ी में एक दीपक ने अपना सिर उठाया, उसने कहा कि मैं अंधेरे को चैलेंज करता हूँ और कुछ नहीं तो मैं अपने आस पास इसे फैलने नहीं दूँगा। अपने आस पास रौशनी कायम करूँगा कहते हैं उस दीपक को देखकर, हर झुग्गी, झोपड़ी से एक दीपक जल उठा, दुनिया हैरान रह गई, इन दीप कों ने अंधेरे को पसारने से रोक लिया, ताकि लोग देख सके।

मैं समझता हूँ कि आज जब एक अंधेरा पूरी ताकत के साथ सच पर फ़तेह पाने के लिए ललकार रहा है तब पंजाब एक दीपक की तरह इस अंधेरे को चैलेंज कर रहा है।

ये शब्द थे मानवाधिकार के सदस्य जसवंत सिंह खालड़ा के,इस स्पीच के कुछ महीनों बाद उनके घर कुछ अजनबी शख्स आय उन्हें अपने साथ लेकर चले गए, उस दिन के बाद जसवंत सिंह खालड़ा कभी घर नहीं लौटे।

खालिस्तान मूवमेंट की शुरुआत 1973 में हुई लेकिन 1984 के इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट को लोगों का सपोर्ट मिल रहा था, पंजाब पुलिस इसे कुचल ने के लिए गिरफ्तारियाँ करने लगी, जिस पर शक होता उसे गिरफ्तार कर लिया जाता, सिर्फ शक के आधार पर पुलिस ने कई एनकाउंटर भी किये, 1984 से शुरू हुआ ये दौर 1995 तक चला। जैसे पुलिस को पावर मिली भ्रष्टाचार चरम पर आ गया। पुलिस पुलिस अधिकारियों ने ऐसे ऐसे काम किये कि इंसानियत शर्मसार हो गई। यहाँ उन घटनाओं का उल्लेख गलत होगा। परन्तु जसवंत सिंह जी ने इन सब मामलों को मानयोग हाईकोर्ट चंडीगढ़ में लेकर गए लम्बी लड़ाई लड़ी जब पुलिस के आला अधिकारी फंसते नजर आय तो एक दिन कुछ अज्ञात लोग जसवंत सिंह खालड़ा को लेकर चले गए। उसके बाद वो भी घर नहीं आय परन्तु सब मामले थम गए और पंजाब शांत हो गया। यहाँ ये कहना भी गलत नहीं होगा कि पुलिस को पॉवर के बिना खालिस्तान मूवमेंट रूकती नहीं परन्तु गोली का डर दिखाकर पैसों की वसूली उस समय में पॉवर का गलत इस्तेमाल करके लड़कियों और औरतों के साथ बलात्कार किये गए। नौजवान लड़कों के साथ बहुत बुरी तरह मार पीट और बाद में उनका फर्जी पुलिस एनकाउंटर, अगर लाखों रुपये दे दिए तो शायद जान बच जाए। शायद इसलिए कि कइयों को तो वसूली के बाद मार दिया। लोगों ने अपनी दुश्मनियाँ निकाल ली। आप पुलिस को पैसा दें और अपने प्रतिद्वंदी को बड़ी आसानी से अपने रास्ते से निकलवा दे। इस सारे खेल में उनका सब से ज्यादा नुक्सान हुआ जो खालिस्तान आंदोलन के महत्व को जानता ही नहीं था। इस सब को 0 जसवंत सिंह खालड़ा ने अपनी जानगंवा कर रोका। इसलिए उस महान सामाजिक विचारक को सल्यूट तो बनता है। इस विषय में पूर्व पंजाब DGP के.पी. सिंह गिल ने कहा कि हालात को काबू करने के लिए अगर कुछ लोगों को गलत भी मारना पड़ा तो हालात तो नार्मल हो गए। इस बात पर उस समय मीडिया में बयान आने के बाद बहुत हो हल्ला मचा था और ये बयान रि0 DSP संधू के ट्रेन के नीचे आत्महत्त्या 

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