Farmer :- किसान होने का मतलब है । संघर्ष करना अपने हकों के लिए ।



भारत जब से लोकतांत्रिक आधार से लिखे संविधान के अनुसार चल रहा है तब से ही अपने मौलिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। संविधान के अनुसार पावरफुल व्यक्ति अपनी पावर का इस्तेमाल कर के लोगों के अधिकारों का हनन करके उनको इस हालत पर ले आया है कि या तो वह अपनी मूल भूत ज़रूरतों के लिए मेन मुद्दों से पीछे हटकर अपना व अपने परिवार का पालन - पोषण करे। संघर्ष से दूर रहे।

              बात पुरानी है। परन्तु जब रजवाड़ों का समय होता था तो भी वह लोग पावर का इस्तेमाल करके अपनी प्रजा से तरह तरह के कर (लगान) वसूलते थे। उन पर अत्याचार करते थे। उस समय भी प्रजा का मेन कर्म खेती था संसाधन सीमित थे। मौसम की मार के कारण फसल न होने पर भी कर (लगान) देना पड़ता था। राजा और प्रजा में आपसी प्यार नहीं था इन कारणों से बाहरी ताक़तों ने जब राजाओं से उनका राज्य छीना तो प्रजा ने अपने शासक का साथ देने के जगह खुद व अपने समाज के लिए संघर्ष किया। इस कारणों से दोनों ही ना कामयाब रहे और ग़ुलाम हो गए।



             आज भी वही कुछ हो रहा है। फिर से किसान संघर्ष कर रहा है। और सरकारें कर (लगान) टैक्स लगाकर किसान को परेशान कर रहीं हैं। कारपोरेट जगत की नजर किसान की फसल व उनकी जमीनों पर है। भ्रष्ट्राचार के हाथों में आया हुआ हमारा प्रशासनिक ढाँचा क़ानून और सिस्टम को सही ढंग से लागू नहीं कर पा रहा और कृषि घाटे का सौदा बनती जा रही है। इस बार हमारे प्रधानमंत्री ने अमृत महोत्सव के अवसर पर तिरंगा यात्रा के साथ भूखे लोगों से देश प्रेम की भावना जागृत करने का प्रयास या कहे सफल प्रयास किया। पुराने समय की तरह प्रजा को अपने राष्ट्र व अपनी भूमि से प्यार है। यहाँ शासक भूल गया कि अगर राष्ट्र से प्यार है। तो अपनी भूमि से भी है परन्तु भ्रष्ट्राचार से ग्रस्त हमारे प्रशासनिक व राजनीतिक ढाँचा बहुत सी जगह तिरंगे को उल्टा लिए खड़ा है या फोटो खिंचवाने की होड़ लगी है। भावना नहीं है इस सारी स्थिति को बदला जा सकता है। परन्तु जो सूत्र धार है सरकार और किसानों के बीच वाले लोग या संगठन जो प्रशासनिक अधिकारियों की देख रेख में किसानों के रह नुमा बने हुए हैं। वो लोग या वो अधिकारी किसानों के मांग पत्रों को उच्च शक्तियों तक पहुंचाते हैं परन्तु यथा स्तिथि से वाकिफ नहीं करवाते और शासकों को लगता है विपक्ष करवा रहा है। अधिकारियों को लगता है कि अगर सत्य बता देंगे तो हटा दिए जाएंगे और मलाई से दूर हो जाएंगे।

             संघर्ष जारी है। अपने देश की मिट्टी और अपने देश के लोगों से जुड़े बुद्धिमान लोग अपना धर्म निभा रहे हैं। शायद समाधान हो सकतें हैं। बस दलालों से दूर होना पड़ेगा। और जो लोग किसानी संघर्ष में एक दूसरे की काट करते हैं। दोनों से दूरी बनानी जरूरी है। दोनों का बाईकाट करें तभी संघर्ष जीता जा सकता है।

        और किसानी आंदोलन से जुड़े 80% लोग यथास्तिथि से वाकिफ हैं।

                                                                                                           फिर क्या

  "आसमां में भी छेद हो सकता है। एक पत्थर तबियत से उछालो तो यारों।"

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                                                                                                                                               जय जवान जय किसान

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