एक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभौ निरवैर अकाल मूरत अजूनी सैंभ गुर प्रसाद | || जपु ||

 ||मूल मंत्र का जाप  ||

एक  ओंकार  सतनाम  करता पुरख  निरभौ निरवैर  अकाल मूरत अजूनी सैंभ गुर प्रसाद  | || जपु ||

परमात्मा एक है |  उसी का नाम सत्य है | वह सारी स्रष्टि का कर्ता है |  वह भयमुक्त  है |  वह वैर , घ्रणा आदि से मुक्त है | वह काल  से रहित है | वह जन्म -मरन  के बंधन  से मुक्त है क्योंकि वह स्वयं ही  अपनी सत्ता  से प्रकाशित है | उसके वास्तविक  स्वरुप  को  गुरु  की कृपा  द्वारा  ही  जाना जाता है |  तत्स्वरूप  प्रभु का इस प्रकार जाप करो | 



एक  ओंकार  सतनाम  करता पुरख  निरभौ निरवैर  अकाल मूरत अजूनी सैंभ गुर प्रसाद  | || जपु ||

परमात्मा एक है |  उसी का नाम सत्य है | वह सारी स्रष्टि का कर्ता है |  वह भयमुक्त  है |  वह वैर , घ्रणा आदि से मुक्त है | वह काल  से रहित है | वह जन्म -मरन  के बंधन  से मुक्त है क्योंकि वह स्वयं ही  अपनी सत्ता  से प्रकाशित है | उसके वास्तविक  स्वरुप  को  गुरु  की कृपा  द्वारा  ही  जाना जाता है |  तत्स्वरूप  प्रभु का इस प्रकार जाप करो | 

आदि सच ,युगादी सच , है भी सच्च , नानक होसी भी सच्च  |   सोचै सोच न होवई,  जे सोचे लाख वार ,  चुपे चुप न होवई ,जे लाए रहा लिवतार , भुखिया भुख न उतरी जे  बंना पुरिये  भार  | सहस सयानपा  लाख होई  त इक  न चले नाल , किव सचियारा होइये, किव कूड़े तुट्टे पाल , हुकम रजाई  चलना नानक लिखिया नाल ||

प्रभु की सत्ता स्रष्टि के आरम्भ से ही है | यह चारो युगों के अस्तित्व से पहले भी थी | सतगुरु बताते है कि  प्रभु का सत्स्वरूप  वर्तमान  में भी है और भविष्य में भी सदैव रहेगा | लाखो वार सोचने पर भी कोई  विचारशील नहीं बनता | चाहे कोई अखंड ध्यान -समाधि में लीन हो जाए , परन्तु सच्चा मौन प्राप्त नहीं होता

 

चाहे सभी पदार्थो का ढेर इक्कट्ठा कर लिया जाये तो भी  ( तृष्णा ) की भूख शांत नहीं होती |  चाहे हजारो - लाखो  तरह के हुनर , बुद्धि , कौशल  आदि प्राप्त कर  लो , परन्तु अंत समय एक भी साथ नहीं  चलता |  तब  कैसे  सच्चा ब्रहमज्ञानी बना  जाए , और असत्य   और  भ्रम  के  जाल से कैसे छुटकारा  मिले ?  सतगुरु समझाते  है  ,कि प्रभु की इच्छा  व आज्ञा के अधीन ही रहना चाहिए जोकि उसने हमारे जन्म  के साथ ही लिख दी है |

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