LAKHIMPUR KHERI UPDATE :- अपनी मांगो के पूरे न होने पर 75 घंटे का किसानों के द्वारा धरना।

                           75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव

आपको अंदाजा हो गया होगा कि इस किसान धरने का मकसद क्या है क्यूँ 75 घंटे का ही धरना रखा गया। किसानों के रोष की वजह क्या क्या है। आए इस पर बात करते हैं। :- 


किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में धरने पर बैठे उनको ये तीन कृषि क़ानून स्वीकार नहीं थे इस बीच तकरीबन 380 दिनों तक बहुत बातचीत हुई। बहुत रोष मार्च किया गया। 11- 12 बार टेबल टॉक हुई, आखिर में सरकार और किसान संगठनों की बातचीत बिना किसी हल के बंद हो गई। कई महीनों तक किसान आंदोलन में दिल्ली बैठे रहे परन्तु बातचीत शुरू नहीं हुई दोनों पक्षों में कोई झुकने को तैयार नहीं था। राजनीति चरम पर थी कुछ किसान नेताओं ने सरकार को चिट्ठी भी लिखी और यहाँ तक ये भी बात आई कि सरकार ने किसान संगठनों को पत्र लिखे। परन्तु बात उलझ गई। अब समाधान नजर नहीं आ रहा था। परन्तु कुछ नया करने में माहिर हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक देव जयंती पर किसानों की मांगो को मानते हुए माफ़ी मांगी और तीन कृषि क़ानून वापिस हुए।

अब किसान संगठनों के पास कोई विकल्प नहीं बचा। जिसका अंदाजा लगा कर प्रधानमन्त्री ने माफ़ी मांगी थी। किसान संगठन उसका तोड़ नहीं निकाल सके। और आंदोलन स्थगित कर दिया गया। मौखिक रूप से किसानों की मांगें मान ली गई। क्या क्या मांगे सरकार ने मानी थीं-

1. M.S.P. पर कमेटी का गठन होगा।

2. तीनों कृषि क़ानून वापिस।

3. बिजली बिल वापिस।

4. किसानों के बने केश वापिस।

5. आंदोलन के दौरान जिन किसानों की मृत्यु हुई उनको मुआवज़ा।

6. तिकुनियां काण्ड में शामिल अजय मिश्र उर्फ़ टेनी को बर्खास्त कर केश चलाना।

    (ये बात सरकार ने नहीं मानी थी)

7. किसान से सम्बंधित कोई भी कार्यवाही में संयुक्त किसान मोर्चे को विश्वास में

    लेना।



किसान सगठनों का आरोप था कि तीन कृषि कानून किसानों के लिए घातक हैं। इस पर सरकार को बैकफुट पर जाना पड़ा या यूँ कहे जाने का दिखावा करना पड़ा वादा किया गया कि यू0 पी0 बिजली के बिल माफ़ और इस सबसे जो माहौल बीजेपी के खिलाफ था वो उनके हक़ में हो गया। और पंजाब को छोड़ कर सभी विधानसभाओं पर बीजेपी की सरकार बनी यहाँ तक जनपद लखीमपुर- खीरी में भी सभी सीटों पर बीजेपी की जीत हुई। यहाँ के तिकुनियां क्षेत्र में किसानों के साथ काण्ड हुआ था।


क्या था तिकुनियां का काण्ड :- बीजेपी के केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र उर्फ़ टेनी के गाँव बनवीर पुर में उपमुख्यमंत्री और अजय मिश्र का प्रोग्राम था। किसान वहां संयुक्त मोर्चे की काल पर काले झंडे लेकर तीन कृषि कानूनों के विरोध में इकठ्ठा हुए थे। किसानों की ज्यादा भीड़ के कारण प्रोग्राम स्थगित कर दिया गया। उसके बाद एक थार गाडी किसानों को रौंध कर गई। जिसमें चार किसानों और एक पत्रकार की मृत्यु हो गई और बाद में उग्र भीड़ के हत्थे थार गाडी का ड्राइवर और दो बीजेपी कार्यकर्ता आ गए। उनकी भी मृत्यु हो गई। ये मामला कोर्ट में विचाराधीन है।और आशीष मिश्रा पुत्र अजय मिश्र उर्फ़ टेनी जेल में निरुद्ध हैं। कुछ किसानों को भी हत्या का अभियुक्त बना कर जेल भेजा गया। किसानों का आरोप है कि प्रोग्राम स्थगित होना टेनी के परिवार से सहन नहीं हुआ इसलिए घटना को अंजाम दिया गया। इसी घटना के कारण बीजेपी बैकफुट पर आ गई। और प्रधानमंत्री को माफ़ी मांग कर स्तिथि नियंत्रण में करनी पड़ी।

जब बीजेपी ने दोबारा से विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की और पंजाब में किसान संगठनों का चुनाव लड़ने का फैसला गलत साबित हुआ। और यूपी में राकेश टिकैत बैकफुट पर गए। टिकैत संगठन के कई बड़े कार्यकर्ताओं ने संगठन छोड़ दिया। नया संगठन बना लिया तो बीजेपी भी अपने वादों से पलटी कहाँ बिजली बिल माफ़ करने की बात थी और कहाँ ट्यूबलों पर बिजली के मीटर लगने लगे। M.S.P. कमेटी गठन में संयुक्त मोर्चे की बात थी और उनको पूछा नहीं गया। कुल मिलाकर दोबारा से प्रधानमंत्री बात के धनी नहीं निकले और फिर संयुक्त मोर्चे ने 75 घंटे का धरना लखीमपुर- खीरी, नवीन गल्ला मंडी में 18,19,20 अगस्त को रखा। ये धरना 75 वर्षों के अमृत महोत्सव के तर्ज पर रखा गया।

अब देखतें हैं कि सरकार पर इसका क्या असर होता है। इस समय नवीन गल्ला मंडी में किसान धरना शुरू हो चुका है। किसानों ने लखीमपुर को धरने के लिए चुनकर किसानों को भावनात्मक रूप से इकठ्ठा करने का प्रयास किया है। जिसमें आज पहले दिन किसान संगठन कामयाब भी हुए। प्रशासन भी पूर्ण रूप से मुस्तैद है। लखीमपुर की मंडी 21 अगस्त तक बंद कर दी गई है। तिकुनियां काण्ड की पुनः वृति ना हो इस बात का पूरा ध्यान रखा जाएगा। इस दौरान कोविड गाइडलाईन का भी पालन नहीं किया गया।

बाहर के किसानों ने लखीमपुर, पीलीभीत, शाहजंहापुर और सीतापुर के लोकल किसानों से अपील की है कि वह लोग दूसरे राज्यों से उनके साथ आकर खड़े हो गए हैं। वह भी अपने घरों से निकले जो किसान नेता लोकल है। संगठनों के लिए धरने की व्यवस्थाओं को देख रहें हैं। उनका कहना है कि लखीमपुर में मुजफ्फरनगर वाला माहौल बनेगा। मुजफ्फरनगर में रिकार्ड तोड़ भीड़ इकठ्ठा हुई थी। अगर लखीमपुर में भी भीड़ इकठ्ठा हो जाती है तो फिर बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनावों के बारे में सोचना पड़ेगा। हालाकि बीजेपी के नेता हर स्तिथि को पलटने में माहिर हैं। और कमजोर विपक्ष उनके लिए लाभदायक है।

परन्तु लोकतंत्र की ख़ूबसूरती यह है कि हर व्यक्ति अहंकार को छोड़कर जनता की आवाज को सुने जो भी इस माहौल में किसानों व देश के हित में सही है। वह फैसला ले, लोगों का समर्थन राजनीति से नहीं ईमानदारी से लेना चाहिये। अगर कृषि सुधार देश और किसानों के फायदे के हैं। तो होने चाहिए। अगर अपनी पार्टी व कुर्सी के लिए कारपोरेट जगत से लाभ लेकर किसानों का गला घोटना है। तो गलत है.....   

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