अशोक स्तंभ :- राष्ट्र के प्रतीक चिन्हों में बदलाव पर मचा बवाल ?

'नए संसद भवन में स्थापित अशोक स्तंभ के मूल स्वरूप से अलग शांत सौम्य शेरों की जगह गुशैल शेर प्रदर्शित करने का आरोप विपक्ष द्वारा सरकार पर लगाया गया।'





विपक्ष ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान बताते हुए तत्काल बदलने की मांग की है। विपक्ष की और से व्यंग्य किया गया कि अशोक काल की मूल कृति की जगह निकल जाने की प्रवृत्ति का भाव है। एक दिन पहले जब प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के ऊपर सामने की और अशोक स्तंभ की प्रतिकृति (राष्ट्रीय चिन्ह) का अनावरण किया था। पूजा अर्चना भी की गई और विपक्षी दलों ने इस पर सवाल खड़ा किया था विपक्षी नेताओं ने कहा था कि संसद सरकार की ,नहीं है लिहाजा अनावरण लोक सभा अध्यक्ष को करना चाहिये था भाजपा की ओर से स्पष्ट किया था कि संसद का निर्माण सरकार करा रही है। निर्माण पूरा होने के बाद उसे संसद को हस्तांतरित कर दिया जाएगा लेकिन विवाद थम ने का नाम नहीं ले रहा है। विपक्ष के नेताओं ने ट्विट्कर नया विवाद खड़ा कर दिया।

 

कांग्रेस नेताओं ने बोला :- अधीर रंजन ने लिखा कृप्या दोनों कृति में शेरों के चेहरे को देखिये यह सारनाथ को प्रदर्शित करता है। या फिर गीर के शेर को इसे देखिये और जरूरत हो तो दुरुस्त कीजिये। कांग्रेस महासचिव जयराम नरेश ने कहा सारनाथ के अशोक स्तंभ पर बने शेरों का चरित्र और प्रकृति को बदलना कुछ और नहीं बल्कि भारत के राष्ट्र चिन्ह का अपमान है।

                                                                         आम आदमी पार्टी से राज्य सभा सदस्य संजय सिंह आरोप लगाया कि राष्ट्र चिन्ह ही बदल दिया उन्होंने ट्विट्को सेर करते हुए सवाल उठाया कि मै भारतवासियों से पूछना चाहता हूँ कि राष्ट्रीय चिन्ह बदलने वालों को राष्ट्र विरोधी बोलना चाहिए कि नहीं बोलना चाहिए। संजय सिंह ने जो ट्विट्किया कि पुराने अशोक स्तंभ में सिंह जुम्मेदार शासक की तरह गंभीर मुद्रा ने दिखता है वही दूसरे में सिर्फ खौफ फैलाने वाला जैसा लग रहा है।

                                                        सरकार ने जवाब दिया

केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने भी दोनों का फ़ोटो ट्विट्करते हुए समझाया कि यह फर्क क्यों दिख रहा है यह देखने वाले की आँखों पर निर्भर करता है कि वह क्या देखना चाहते हैं सारनाथ की मूल कृति 1.6 मीटर की है जब कि संसद पर लगी कृति 6.5 मीटर की है अगर इसे सारनाथ के आकार में ही कर दिया जाए दोनों बिलकुल एक जैसे लगेंगे। संसद भवन पर स्थापित अशोक स्तंभ 33 मीटर की ऊंचाई पर है वहाँ मूल

कृति के आकार की कृति लगाने से कुछ भी नहीं दीखता लिहाज़ा  कृति लगाई गई है अगर अशोक स्तंभ की मूल कृति को भी नीचे से देखा जाए तो वह उतनी ही सौम्य या गुस्सैल दिख सकती है। जिसकी अभी चर्चा हो रही है। भाजपा के इंटरनेट मीडिया प्रभारी अमित मालवीय ने कहा की आलोचक प्रिंट में निकाली गई 2 ही इमेज की विशालकाय 3 ही इमेज के साथ तुलना कर रहे हैं इसीलिए भ्रमित हैं।

                                                                          इस बारे में भारतीय पुरात्तत्व सर्वेक्षण में पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बी.आर. मणि ने कहा कि मूलस्तंभ 7-8 फिट का है जबकि यह लगभग 21 फिट का है इस तरह के अंतर के साथ परिप्रेक्षय बदलता है। जमीनी स्तर से देखने पर कोण अलग होता है। लेकिन सामने से देखने पर साफ़ होता है कि इसे कॉपी करने का अच्छा प्रयास है। 1905 में उत्खनित अशोक स्तंभ को भारत के संसद भवन के ऊपर स्थापित करने के लिए कॉपी किया गया था। विपक्षी नेताओं के दावों को बेबुनियाद या बेमानी नहीं कहेंगे लेकिन इस पर राजनैतिक टिप्पणी करना ठीक नहीं है।

 

                             नए संसद भवन को लेकर लगातार होता रहा है। विवाद

 

मालूम हो की नए संसद भवन के निर्माण के वक्त से ही विवाद खड़ा है। कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट तक ने याचिका दाखिल कर संसद भवन और सेंट्रल विस्टा के निर्माण पर रोक लगाने की मांग की थी। जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया था। विपक्ष का आरोप था सरकार बे वजह पैसा खर्च कर रही है। जबकि सरकार की और से दस्तावेज़ प्रस्तुत किये गए थे कि पुराना भवन  खतरनाक हो गया है। नया संसद भवन बनाने का सुझाव सबसे पहले कांग्रेस काल में तब आया था जब मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष थीं।                                                                                                                    

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